ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कुण्डली में राहु और केतु
के विशेष स्थिति में होने पर कालसर्प योग बनता है। कालसर्प दोष के बारे में कहा
गया है कि यह जातक के पूर्व जन्म के किसी जघन्य अपराध के दंड या श्राप के फलस्वरूप
उसकी जन्मकुंडली में बनता है।
यदि कुंडली के लग्न भाव में राहु विराजमान हो और सप्तम भाव में केतु ग्रह उपस्थित हो तथा बाकी ग्रह
राहु-केतु के एक ओर स्थित हों तो कालसर्प दोष योग का निर्माण होता है।
कालसर्प भंग होने के योग :-
- यदि उपचय भाव में कोई शुभ ग्रह उपस्थित हो तब यह योग निष्प्रभावी हो जाता है।
- केंद्र में अशुभ ग्रह होने से यह योग अपना दुष्प्रभाव नहीं दिखाता है।
- यदि लग्नेश, लग्न, चंद्रमा और सूर्य प्रबल हैं तो यह योग अर्थहीन हो जाता है।
- यदि कुंडली में पञ्च महापुरुष योग उपस्थित हो तो काल सर्प निष्प्रभावी होता है।
- यदि कुंडली में पंच महापुरुष योग है तो भी जातक को इस दोष का अशुभ प्रभाव नहीं झेलना पड़ता।
प्रभाव -:
कालसर्प दोष से पीडित जातक की सेहत खराब रहती है और
उनकी आयु भी कम होती है। यह किसी असाध्य रोग से ग्रस्त रहते हैं। इन जातकों को
आर्थिक, व्यवसाय और
करियर के क्षेत्र में काफी मेहनत करनी पड़ती है। इन्हें दोस्तों और बिजनेस
पार्टनर से धोखा मिलता है। सफलता पाने में मुश्किलें आती हैं।
नुकसान -:
कुंडली में कालसर्प दोष के कारण जातक के विवाह में
देरी आती है, उसे कोई पुराना रोग घेरे रहता है एवं इन्हें पैतृक संपत्ति का नुकसान होता
है। इन दोष से प्रभावित जातकों की वाहन दुर्घटना की संभावना रहती है और आत्मविश्वास में कमी आती है। ये वित्तीय और
कानूनी समस्याओं के कारण परेशान रहते हैं। इस योग में उत्पन्न जातक का जीवन
व्यवसाय, धन, परिवार और संतान आदि के कारण अशांत रहता है।
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