इतिहास ने हमेशा ही लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा
है। फिल्म की दुनिया का हाल भी कुछ ऐसा ही है। आज हर निर्माता-निर्देशक इतिहास के
पन्नों में अपनी सफलता के सपने देखने में लगे हैं। आज की आधुनिक और युवा पीढ़ी को
किताबों के पन्नों में इतिहास पढ़ने में वैसे भी मज़ा नहीं आता, उनके लिए ये इतिहास
पर आधारित फिल्में किसी उपहार से कम नहीं होती जिसमें मनोरंजन भी खूब होता है तो
इतिहास से रूबरू होने का भी मौका मिलता है।
हाल ही में रिलीज़ होने वाली सुपरस्टार ऋतिक
रोशन की फिलम ‘मोहनजोदड़ो’ भी लोगों का खूब ध्यान
आकर्षित कर रही है। मोहनजोदड़ों फिल्म हड़प्पा संस्कृति से जुड़ी हुई है लेकिन
फिल्म में इस संस्कृति से ज्यादा मोहनजोदड़ो पर ध्यान केंद्रित किया गया है। तो आइए एक नज़र डालते हैं मोहनजेदड़ो पर -:
- इतिहासकारों का कहना है कि हड़प्पा संस्कृति
का वजूद 4000 साल से भी अधिक पुराना है।
- वर्तमान समय में यह नगर पाकिस्तान के पंजाब
प्रांत माण्टगोमरी जिले में हड़प्पा नामक पुरास्थल है। वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान
के सिंध प्रांत में भी इस संस्कृति के होने के सबूत मिलते हैं। लरकाना जिले में
सिंधु नदी के किनारे ‘मोहनजोदड़ो’ नगर बना हुआ है।
- इतिहासकारों के अनुसार
मोहनजोदड़ो हड़प्पा संस्कृति का ही एक सुंदर और भव्य नगर है। यह नगर हड़प्पा
संस्कृति का सबसे प्राचीन पुरास्थल हो सकता है।
हिंदू धर्म से है
संबंध :-
- आपको जानकर हैरानी होगी
कि मोहनजोदड़ो नगर का संबंध हिंदू धर्म से है। इस नगर में प्राप्त हुई मूर्तियां, दीवारों की नक्काशी और लिपियां दर्शाती हैं कि
यहां पर रहने वाले लोग हिंदू थे।
- इस नगर की खुदाई में
5000 वर्ष प्राचीन शिवलिंग भी प्राप्त हुआ है। मान्यता है कि हड़प्पा संस्कृति
के लोग इस विशाल शिवलिंग की पूजा किया करते थे। इसके अलावा यहां के लोग मूर्ति
पूजा भी किया करते थे, इस बात के भी सबूत
मिले हैं।
महाभारत से है जुड़ा :-
- शोधकर्ताओं का कहना है कि
मोहनजोदड़ो वही क्षेत्र है जहां पांडवों और कौरवों के बीच महाभारत का युद्ध हुआ था।
(उस समय कुरुक्षेत्र की जमीन काफी बड़ी थी किंतु
यदि वर्तमान परिदृश्य में देखा जाए तो आज यह केवल हरियाणा के एक छोटे से हिस्से
में ही सिमट कर रह गया है।)
- द्वापर युग में इस नगर
के उत्तरी क्षेत्र को गांधार राज्य, मद्र, कंबोज और कैकय राज्य के नाम से जाना जाता था।
- इस नगर की तबाही का
कारण भी महाभारत का युद्ध ही था। दरअसल युद्ध के दौरान गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र
अश्वथामा के ब्रह्मास्त्र छोड़ने के कारण इस नगर का अंत हो गया
था। यह ब्रह्मास्त्र आज के न्यूक्लियर बम से कुछ कम नहीं माना जाता है।
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