चार धामों में से एक
चार धामों में से एक जगन्नाथ पुरी
भगवान कृष्ण को समर्पित है। इस मंदिर के निर्माण के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है। किवदंती है कि एक बार
यशोदा, देवकी जी-श्रीकृष्ण, सुभद्रा और बलराम के साथ वृंदावन आए हुए थे। रानियों ने यशोदा जी से
निवेदन किया कि वे श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन करें।
सुभद्रा ने दिया दरवाज़े पर पहरा
उनकी बातें कोई न सुने इसलिए
सुभद्रा को दरवाज़े पर पहरा देने के लिए कहा। श्रीकृष्ण और बलराम को यहां आने की
मनाही थी।
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बाल लीलाओं का वर्णन
यशोदा जी ने श्रीकृष्ण की बाल
लीलाओं का वर्णन आरंभ किया। उनकी बातों में वहां बैठे सभी लोग मग्न हो गए।
दरवाज़े पर पहरा दे रही सुभद्रा भी बाल लीलाओं को सुनने में मग्न हो गई और इतने
में ही वहां श्रीकृष्ण और बलराम द्वार पर आकर उन सबकी बातें सुनने लगे।
सुभद्रा की मूर्ति का कद
अधिक प्रेमभाव के कारण स्वयं
सुभद्रा का शरीर पिघलने लगा। इसी वजह से जगन्नाथ मंदिर में सुभद्रा की मूर्ति का
कद सबसे छोटा है।
नारद मुनि आए
बाल लीला सुनाने के दौरान ही वहां
अचानक से नारद मुनि आ पहुंचें और उनके आगमन से सभी लोग होश में आए।
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राजा इंद्रद्युम्न के स्वप्न
तब श्रीकृष्ण का रूप देखकर नारद
मुनि बोले – प्रभु आप कितने सुंदर लग रहे हैं। इस रूप में आप कब अवतार लेंगें? तब श्रीकृष्ण ने कहा कि वे कलियुग में राजा इंद्रद्युम्न के स्वप्न
में पधारे।
विग्रह का निर्माण
श्रीकृष्ण ने राजा से कहा- पुरी की
दुनिया के किनारे एक पेड़ के तने में तुम मेरा विग्रह बनाओ और बाद में उसे मंदिर
में स्थापित करो। राजा ने ठीक इसी प्रकार सब कुछ किया।
रहस्यमयी बूढ़ा ब्राह्मण
उस समय वहां एक रहस्यमयी बूढ़ा
ब्राह्मण आया और उसने कहा कि वह प्रभु की विग्रह बनाएगा लेकिन विग्रह बनाते समय
बंद कमरे में कोई उन्हें देखेगा हनीं वरना वो काम अधूरा छोड़कर चला जाएगा।
कमरे का द्वार
अब बूढ़े ब्राह्मण ने काम शुरु कर
दिया। थोड़े दिनों बाद कमरे से आवाज़ आना बंद हो गई। राजा को चिंता हुई और उन्होंनें
कमरे का द्वार खोल दिया।
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वास्तुकार विश्वकर्मा
द्वार के खुलते ही राजा ने कमरे के
अंदर प्रभु के अधूर विग्रह के अलावा और किसी को नहीं पाया। तब उन्हें एहसास हुआ कि
ब्राह्मण और कोई नहीं बल्कि देवों का वास्तुकार विश्वकर्मा था।
अधूरा विग्रह
तभी वहां नारद मुनि पधारे और उन्होंने
राजा को कहा कि भगवान कृष्ण की यही इच्छा थी। वे खुद चाहते थे कि उनका विग्रह
अधूरा रहे।
पेड़ के तने से बनी मूर्ति
यही कारण है कि जगन्नाथ पुरी के
मंदिर में कोई पत्थर या अन्य किसी धातु की मूर्ति न होकर पेड़ के तने को इस्तेमाल
करके बनाई गई मूर्ति की पूजा होती है।
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