पुरी
के जगन्नाथ मंदिर में भगवान विष्णु स्वयं विराजमान होते हैं। इस मंदिर का महत्व
इतना ज्यादा है कि यहां सच्चे मन से मांगी गई हर मन्नत पूरी होती है। जगन्नाथ
मंदिर को चार धाम की यात्रा में से एक महत्वपूर्ण धाम माना जाता है। भक्तों का
विश्वास है कि जगन्नाथ मंदिर में स्थापित भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा में
साक्षात् ब्रह्मा जी वास करते हैं। इस मंदिर के दर्शन करने दूर-दूर से श्रद्धालु
आते हैं।
वैसे
तो जगन्नाथ मंदिर के निर्माण से लेकर अवसान तक कई रहस्य और चमत्कार जुड़े हुए
हैं लेकिन आज हम आपको जगन्नाथ भगवान के बीमार होने और प्रसाद के रूप में काढ़ा
पीने के बारे में बताएंगें।
दरअसल
164 सालों से चली आ रही परंपरा के अनुसार हर साल ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन
जगन्नाथ भगवान बीमार पड़ जाते हैं और फिर 15 दिन के पश्चात् ही भक्तों को दर्शन देते हैं।
मंदिर
के नियम और परंपरा के अनुसार रथयात्रा से 15 दिन पूर्व जगन्नाथ स्वामी को देवस्नान
कराया जाता है जिस कारण उन्हें लू लग जाती है और उन्हें बुखार आ जाता है।
भगवान
जगन्नाथ के जल्दी स्वस्थ होने के लिए लौंग, इलायची, चंदन, कालीमिर्च,
जायफल और तुलसी पीसकर काढ़ा बनाया जाता है और हर दिन उन्हें ये
काढ़ा पिलाया जाता है। इसके अलावा उन्हें मौसमी फलों का भी भोग लगाया जाता है। मान्यता
है कि इन पंद्रह दिनों तक जगन्नाथ स्वामी दर्शन नहीं देते और केवल विश्राम करते
हैं। इस अवधि में उन्हें राजसी वस्त्रों की अपेक्षा हल्के वस्त्र पहनाए जाते
हैं। बीमार पड़ने के आखिरी यानि पंद्रहवें दिन अमावस्या को भगवान जगन्नाथ को
परवल का जूस दिया जाता है।
भगवान
को चढ़ने वाले काढ़े और परवल के जूस को भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में बांटा
जाता है। इस प्रसाद के बारे में कहा जाता है कि इसको ग्रहण करने से शारीरिक और
मानसिक रोग दूर होते हैं।
जब जगन्नाथ स्वामी पंद्रह दिनों की बीमारी के
बाद ठीक हो जाते हैं तो जगन्नाथ में भव्य रथयात्रा का आयोजन किया जाता है। इस
समय जगन्नाथ जी को राजसी वेशभूषा पहनाई जाती है और उनका भव्य श्रृंगार किया जाता
है।
आज
तक हमने हिंदू धर्म और उससे जुड़ी मान्यता और आस्था के बारे में बहुत कुछ सुना
है लेकिन किसी विशेष मंदिर के भगवान के बीमार पड़ने और उन्हें भोग में काढ़ा
पिलाए जाने की बात अचरज में डाल देती है। किंतु एक बात तो स्वीकार्य है कि भगवान
की लीला को कोई नहीं समझ पाया है।
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