Tuesday 19 July 2016

श्रीकृष्ण ने नहीं ऋषि दुर्वासा ने की थी द्रौपदी की रक्षा : जानिए पूरी कहानी


मान्‍यता है कि द्वापर युग में जन्‍मे ऋषि दुर्वासा भगवान शिव के अवतार थे। उनकी मां अनुसूइया को भगवान शिव ने वरदान स्‍वरूप अपना अंश ऋषि दुर्वासा के रूप में दिया था। कहते हैं कि ऋषि दुर्वासा भगवान शिव के रुद्र रूप से उत्‍पन्‍न हुए थे जिस कारण उनके स्‍वभाव में क्रोध की अधिकता थी। कई पुराणों और ग्रथों में ऋषि दुर्वासा के बारे में वर्णन मिलता है। महाभारत काल में भी उनका वर्णन किया गया है।


महाभारत काल में कौरवों और पांडवों के बैर के बारे में तो सभी ने सुना है और सभी यह भी जानते हैं कि इसी कारण द्रौपदी का चीरहरण भी हुआ था। इसी विषय में एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार चीरहरण के समय ऋषि दुर्वासा के वरदान के कारण ही चीरहरण के समय द्रौपदी अपनी रक्षा कर पाई थी। 

ऐसे मिला था वरदान

एक बार ऋषि दुर्वासा स्‍नान करने के लिए नदी के तट पर गए। यहां नदी का बहाव तेज होने के कारण उनके कपड़े नदी में ही बह गए। इसी नदी में कुछ दूरी पर द्रौपदी भी स्‍नान कर रही थी। ऋषि दुर्वासा की सहायता करते हुए द्रौपदी ने अपनी साड़ी का कपड़ा फाड़कर उन्‍हें दे दिया था। द्रौपदी के इस भाव से ऋषि दुर्वासा काफी प्रसन्‍न हुए और उन्‍होंने द्रौपदी को वरदान दिया कि संकट के समय उसके वस्‍त्र अनंत हो जाएंगें। इसी वरदान ने भरी सभा में चीरहरण के समय द्रौपदी की रक्षा की थी और उसका मान बचाया था।


कुंती को दिया था पांच पुत्रों का वरदान

महाभारत के युद्ध के विषय में ऐसे बहुत सारे रहस्‍य हैं जिनसे लोग अभी तक अनजान हैं। उस समय पांडवों की माता कुंती को ऋषि दुर्वासा के ही वरदान से मंत्रोच्‍चारण से पांडवों के रूप में पांच पुत्रों की प्राप्ति हुई थी।





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