रुद्रपयाग को देवभूमि भी कहा जाता है।
मान्यता है कि इस स्थान पर भगवान शिव वास करते हैं। रुद्रप्रयाग में भगवान शिव
के अनेक प्राचीन मंदिर हैं जिनका उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। किवदंती है कि
रुद्रप्रयाग जिले में स्थित एक गांव में भगवान शिव और मां पार्वती का विवाह हुआ था।
10 नवंबर से शुरु होंगें एकादशी, आयेगा धन ही धन
रुद्रप्रयाग के त्रियुगीनारायण गांव में
एक पवित्र अग्नि जल रही है जिसके बारे में मान्यता है कि इसी अग्नि के सामने शिव
और पार्वती ने सात फेरे लिए थे। यह अग्नि तब से लगातार जल रही है और श्रद्धालु इसे
निरंतर प्रज्वलित रखते हैं।
करियर में सफलता चाहते हैं तो इसे हमेशा रखें अपने पास
भगवान शिव को पाने के लिए मां पार्वती
द्वारा इसी स्थान पर तपस्या भी गई थी। मां पार्वती की तपोभूमि भी यहीं स्थित है।
इस स्थान को गौरी कुंड के नाम से जाना जाता है। हर साल अनेक श्रद्धालु यहां आकर
इस पवित्र भूमि के दर्शन करते हैं।
केपी पद्धति के अनुसार कब होगा विवाह ?
त्रियुगीनारायण गांव में तीन कुंड भी हैं
जिनके बारे में कहा जाता है कि इनका निर्माण ब्रह्मा, विष्णु और
शिव के नाम पर किया गया था। विवाह की सभी रस्में निभाने से पहले त्रिदेवों ने यहां
स्नान किया था।
पुराणों में इस मंदिर की स्थापना का श्रेय शंकराचार्य जी को दिया गया है। इस स्थान पर भगवान शिव वामन अवतार में पूजनीय हैं। मंदिर आंगन में वह अग्नि निरंतर जल रही है जहां शिव-पार्वती ने फेरे लिए थे। साथ ही मंदिर में ही एक अखंड दीपक भी जलता रहता है।
No comments:
Post a Comment